Monday 22 July 2013

किस्मत ही नहीं साहस भी..


श्रीलंका के खिलाफ ट्राई सिरीज़ के फाईनल में टीम इंडिया को 1 ओवर में 15 रन की दरकार थी ,1 विकेट बाकी था और क्रीज़ पर मौजूद थे महेंन्द्र सिंह धोनी और फिर...फिर क्या धोनी नें यह रन केवल 4 गेंदो पर ही बना दिए और दिला दी भारत को एक और यादगार जीत. ये है धोनी को दम ..

 आज जब भी कोई अच्छी किस्मत की बात करता है तो पहला नाम उसकी ज़ुबां पर महेंन्द्र सिंह धोनी का ही आता है.आए भी क्यों ना ,धोनी ने भारतीय क्रिकेट को जिन बुलंदियों तक पंहुचाया हैं वहां तक हर टीम पहुंचना चाहती है.2007 में टी-20 वर्ल्ड कप जीताना हो,चाहे 2011 में टीम को विश्व चैंपियन बनाना या इस साल चैंपियस ट्रॉफी जिताना धोनी ने टीम की झोली खिताबों से भर दी. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सारे खिताब केवल किस्मत के भरोसे मिले ? मुझे ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता .केवल किस्मत के दम पर बार-बार आपको कोई जीत नहीं दिला सकता,हां साहस के बलबूते ऐसा मुमकिन जरूर है और इतना साहसी खिलाड़ी सिर्फ धोनी है. 2007 टी-20 वर्ल्ड कप फाइनल का आखिरी ओवर जोगिंदर शर्मा से करवाना हो चाहे वेस्टइंडीज़ ट्राई सिरीज़ में रोहित शर्मा से ओपिनिंग करवाना हो धोनी ने हमेशा ही साहसी फैसले लिए.उनके ये फैसले सही साबित भी हुए.जिस खिलाड़ी पर उन्होने भरोसा जताया उसने अपने को प्रूव भी किया.शायद आज से 2-3 साल पहले किसी ने सोचा भी न रहा होगी कि सचिन,द्रविड़,लक्ष्मण,सहवाग,गम्भीर के बिना टीम इंडिया लगातार जीतेगी.लेकिन टीम जीत रही है.इस जीत के सूत्रधार भी धोनी ही हैं. एक ऐसा कप्तान जो कि खिलाड़ियो को सही तरह से यूटीलाइज़ करता है.टीम को न तो अब पांचवे गेंदबाज की कमी महसूस होती है और न ही किसी मैच फिनीशर की. टीम के पास खुद कप्तान धोनी के रूप में सबसे बड़ा मैच फिनिशर है जो अपने बलबूते मैच का रूख बदल देता है.धोनी न सिर्फ टीम के मुखिया हैं बल्कि युवा खिलाड़ियों के लिए इंस्पिरेशन भी . इसके बावजूद भी अगर कोई कहे कि धोनी ने ये मुकाम केवल अच्छी किस्मत के बलबूते पाया है तो ये बात बिल्कुल भी हजम नहीं होती.धोनी ने सब कुछ अपने दम पे पाया है.अपनी सफलता की पठकथा भी उन्होने अपने साहस और हौसले के दम पर ही लिखी है.